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पारंपरिक पशु चिकित्सा पद्धतियाँ

by ruchita last modified Jan 07, 2014 09:43 AM

Jan 12, 2011

बाहरी-परजीवी (Ectoparasites)

बाहरी-परजीवी जैसे कि टिक्स और कण (माईट्स) सफाई मे कमी और खराब प्रबंधन की वजह से पक्षियों को प्रभावित करते हैं। ये रक्त चूसने वाले परजीवी रात में निकलते है। दिन के दौरान पक्षियों पर न रहने के कारण इनका उन्मूलन मुश्किल हैं। जूए पक्षियों की त्वचा पर ही अपना सारा जीवन बिताती हैं और उनके पंखो पर ही अंडे देती हैं।

1. मुर्गी घर का सुगंधित करण - आबनूस (Diospyros ebenum) या तम्बाकू के सूखे हुए पत्तो को मुर्गी घर के नीचे जला देने से धुआं मुर्गी घर में चला जाता है। ऐसा करने से जूँए, टिक्स और कण (माईट्स) दूर हो जाते है। पक्षियों को धूएं से दूर रखना चाहिए।

2. नींबू (Citrus acida) की छाल के पाउडर को भी जला कर टिक्स और कण (माईट्स) को हटाया जाता है। इसी तरह कई पौधों के सूखे पत्तों को जलाकर सुगंधित करण किया जाता है, जैसे कि मोगरा (Jasminum sambaci), सुगंधित अरनी (Premna odorata), और निर्गुण्ठी (Vitex negundo)।

3. निर्गुण्ठी (Vitex negundo), तुलसी (Ocimum sanctum), या नींबू घास (Cymbopogon citrates) का गुलदस्ता मुर्गी घर में लटका दिया जाता है। इसकी गंध बाहरी- परजींवियो को दूर रखती है।

4. ताजा और सूखे तंबाकू की पत्तियों को पक्षी की त्वचा पर रगड़ने से जूँए मर जाती है। निम्नलिखित मिश्रण मलने से भी जूँओ को दूर करने मे सहायता मिलती है:

•दो भाग नीम के पत्ते या तेल को एक भाग नमक और एक हिस्सा राख मे मिलाए
•एक भाग नमक और दो हिस्से सरसों का तेल मिलाए

5. महुआ (Madhuca longifolia), तोरा या करान्जी के तेल को भी पक्षियों की त्वचा पर लगाने से जूँओं से राहत मिलती है। आदिवासी क्षेत्रों में विशेष रूप से इसे इस्तेमाल किया जाता है।

6. नीम के पानी में भिगोना - नीम की ताजा पत्तियों को 15-20 मिनट के लिए उबाल कर रात भर रखें और पत्तियां निकाल ले। पानी के इस घोल मे पक्षियों को भिगोया जाता है और पत्तियों को पीस कर इसका लेप शरीर के प्रभावित भागों पर लगाया जाता है।

7. एक मुट्ठी नींबू घास (Cymbopogon citrates) को, मुर्गी के अंडे देने से पहले, घोंसले में डालने से परजीविओ से बचाव होता है।

आंतरिक परजीवी (Endoparasites)

1. पपीता सार (कैरिका पपाया) - कच्चे फल या शाख मे चाकू के साथ छेद करने से पौधे का रस इकठ्ठा किया जाता है। सुबह के समय इस रस को अच्छी मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। पौधों के रस के 5 भागों मे एक भाग (10 – 15 मि. ली.) पानी मिला कर 5 दिनों तक दिया जाता है। यह मात्रा 10 पक्षियों के लिए पर्याप्त है। इस मिश्रण में सक्रिय विशिष्ट तत्त्व पेप्सिन जैसी एंजाइम ‘पपायन’ है, जो आंत्र परजीवी (Ascarids) पर मुख्य रूप से प्रभावी होता है।

2. भुनी हुई सुपारी को पीसकर, मुर्गियों की फीड मे मिलाकर खिलाना चाहिये। एक सप्ताह तक, दिन में एक बार, इस चूर्ण की एक चुटकी पक्षी के मुंह में भी डाली जा सकती है।

3. 250 ग्राम ताजा हल्दी के प्रकंद को कूटकर इसका रस निचोड़ लें। इस रस को पीने के पानी मे मिलाकर प्रयोग किया जाता है। यह दवा हर महीने में एक बार निश्चित रूप से दी जानी चाहिए।

4. लहसुन की 6 तिरिया पीस कर मुर्गियों को फीड मे मिलाकर खिलाएं। यह मात्रा 1-2 दिनों के लिए 10 मुर्गियों के लिए पर्याप्त है। इस प्रक्रिया को महीने में एक बार दोहराएँ।

5. मधु मालती (Quisqualis indica), सिनधुरिया (Bixa orellana), और डुकू (Lansium domesticum) के एक कप बीजों को पानी में 15 मिनट तक उबालें। इसे अच्छे से छान कर रस इकट्ठा कर ले और ड्रौपर की सहायता से एक बड़ा चम्मच रस प्रत्येक पक्षी को प्रति दिन पिलाये।

6. एक भाग अनार फल को दो भाग पानी में 15-20 मिनट के लिए उबालकर, पानी को छान लें। इस छने हुए रस को 2-3 दिनों के लिए पीने के पानी के रूप में दिया जा सकता है।

7. कालीजीरा या सोमराज (Veronia anthelmintica) के सूखे बीज का इस्तेमाल ऐसकैरिड्स और औक्स्यूरस जैसे परजीवी कीड़ों के प्रतिकूल किया जाता है। इन पौधों को पूरे भारत मे गांवों के आस पास जंगली झाड़ियों के रूप में उगता पाया जा सकता है।

 

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